जब ईश्वर देख रहा है: अद्भुत चमत्कार – 5 जीवन बदलने वाले सबक

ईश्वर देख रहा है

ईश्वर देख रहा है, ईश्वर सब पर नजर रखते हैं..!!

कई बार हम अपने जीवन में सोचते हैं कि भगवान कहां हैं? वो क्यों नहीं हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देते? लेकिन एक दिन, मुझे इस सवाल का जवाब मिला—जब ईश्वर खुद मेरे सामने आए। आइए, जानें इस कहानी में कैसे ईश्वर की उपस्थिति ने मेरे जीवन को बदल दिया।

अचानक दस्तक: ईश्वर का आगमन

एक दिन सुबह-सुबह दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोलते ही देखा, एक आकर्षक कद-काठी का व्यक्ति, चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है। मैंने चौंककर कहा – “जी कहिए!”
वो हँसते हुए बोले – “अरे भई, आप तो रोज हमारी ही गुहार लगाते थे। अब जब मैं सामने खड़ा हूँ, तो कहते हो, जी कहिए!”

यह सुनते ही मैं थोड़ा हैरान हो गया। मैंने कहा – “माफ कीजिए, भाई साहब! मैंने आपको पहचाना नहीं…”
वो मुस्कुराते हुए बोले – “मैं वो हूँ जिसने तुम्हें साहेब बनाया है। मैं ईश्वर हूँ! तुम कहते थे न कि मैं नज़र में हूँ पर दिखता नहीं। लो, आज पूरा दिन तुम्हारे साथ हूँ।”

संदेह और सत्य: क्या सच में ईश्वर?

ये सुनते ही मेरे मन में शक पैदा हुआ और मैंने थोड़े चिढ़कर कहा – “ये क्या मज़ाक है?”
ईश्वर ने हंसते हुए कहा – “मज़ाक नहीं, सच है। आज सिर्फ तुम मुझे देख पाओगे, बाकी कोई नहीं देख सकेगा।”

अभी मैं कुछ और सोचता, तभी माँ की आवाज़ आई – “बाहर क्या कर रहा है? अंदर आ जा, चाय तैयार है।”

अब उनकी बातों पर थोड़ा विश्वास होने लगा था। मन में थोड़ी घबराहट भी थी। मैंने चाय का पहला घूँट लिया, और जैसे ही गुस्से में माँ से कुछ कहने ही वाला था, तभी ध्यान आया, “अरे! ये ईश्वर हैं, माँ पर गुस्सा करना ठीक नहीं।” तुरंत खुद को शांत किया।

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ईश्वर के साथ दिन की शुरुआत

अब जहाँ मैं जाता, ईश्वर भी मेरे साथ होते। थोड़ी देर बाद जब मैं नहाने के लिए बाथरूम की तरफ बढ़ा, तो ईश्वर भी मेरे पीछे-पीछे आ गए।
मैंने कहा – “प्रभु! यहाँ तो बख्श दो…” 😅

नहाकर, तैयार होकर, पूजा घर में गया। इस बार मन से प्रार्थना की, जैसे पहली बार ईमानदारी से पूजा कर रहा था। ईश्वर मेरे सामने थे, और मुझे लगा कि आज मुझे खुद को साबित करना होगा।

ईश्वर देख रहा है – ईमानदारी का सबक

जब मैं ऑफिस के लिए निकला और कार में बैठा, तो ईश्वर बगल में बैठे हुए थे। सफर शुरू ही हुआ था कि एक फोन आया। मैंने फोन उठाने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी ध्यान आया, “अरे! तुम किसी की नज़र में हो!”
कार को साइड में रोका और फोन पर बात की। बात करते-करते मैंने कहना चाहा कि “इस काम के ऊपर पैसे लगेंगे,” पर प्रभु के सामने झूठ कैसे बोलता? मुँह से सिर्फ इतना निकला, “आप आ जाइए, काम हो जाएगा।”

उस दिन ऑफिस में न किसी से गुस्से में बात की, न ही किसी कर्मचारी से बहस हुई। रोज़ की 25-50 गालियाँ आज “कोई बात नहीं, इट्स ओके” में बदल गईं।

शाम की शांति और रात का आत्मविश्लेषण

शाम को जब मैं ऑफिस से निकला, तो बगल में बैठे ईश्वर को देखकर मैंने हंसी में कहा, “प्रभु! सीट बेल्ट लगा लें, नियम आप भी निभाएं।” वो हंस पड़े।

रात्रि भोजन के समय माँ बोलीं, “आज पहली बार खाना बिना कोई शिकायत के खा लिया! क्या बात है?”
मैंने कहा, “माँ! आज मैंने खाना नहीं, प्रसाद ग्रहण किया है। और प्रसाद में कोई कमी नहीं होती।”

रात में सोने के लिए बिस्तर पर लेटा, तो ईश्वर ने सिर पर हाथ रखा और बोले, “आज तुम्हें नींद के लिए किसी दवा या संगीत की  ज़रूरत नहीं है।”

ईश्वर देख रहा है – सपना या सच्चाई?

सुबह गालों पर हल्की थपकी ने मुझे जगा दिया। माँ की आवाज़ आई – “कब तक सोएगा? उठ जा अब!”

हां, ये सपना ही था। लेकिन ऐसा सपना जो मेरे जीवन की गहरी नींद से जगा गया। अब मुझे समझ में आ गया कि “तुम मेरी नज़र में हो।”

निष्कर्ष: जब ईश्वर देख रहा है

इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि जिस दिन हम ये समझ जाएंगे कि ईश्वर हमें देख रहे हैं, हमारी हर सोच और हर काम बदल जाएगा। जब हमें एहसास होता है कि हमारी हर हरकत पर ईश्वर की नज़र है, तब हम जीवन को सही मायने में जीने लगते हैं।


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