बुद्धिमान साधू की कहानी: 5 अनमोल जीवन सीख | An Inspirational Story

बुद्धिमान साधू की कहानी

बुद्धिमान साधू की कहानी: अनमोल जीवन सीख

जीवन में बुद्धिमानी से बड़ा कोई गुण नहीं है। यह हमें सही दिशा दिखाती है और हमारे फैसलों को मजबूत बनाती है। आज की इस कहानी में, हम एक ऐसे बुद्धिमान साधू के बारे में जानेंगे जिसने अपनी चतुराई और समझदारी से राजा को अपने पक्ष में कर लिया। इस कहानी में छिपी सीख हर किसी के लिए प्रेरणादायक है।

कहानी की शुरुआत एक साधू के राजमहल में आगमन से होती है। साधू राजा से मिलने के लिए द्वारपाल से कहता है कि राजा से जाकर कहें कि उनका भाई आया है। द्वारपाल सोचता है कि ये कोई दूर का रिश्तेदार होगा, जो अब साधू बन गया है।


बुद्धिमान साधू का आगमन

जब राजा ने यह सुना कि उसका ‘भाई’ आया है, तो उसने मुस्कुराते हुए साधू को अंदर बुलाया। साधू भीतर आते ही राजा से बोला – ‘कहो अनुज, कैसे हो?’ राजा ने भी सरलता से जवाब दिया – “मैं ठीक हूँ भैया, आप कैसे हैं?”

जब साधू राजा के पास बैठा, तो कुछ देर तक दोनों शांत रहे। राजा के चेहरे पर जिज्ञासा साफ झलक रही थी, मानो वह सोच रहा हो कि साधू किस उद्देश्य से आया है। साधू ने राजा की चुप्पी और जिज्ञासा को भांपते हुए खुद ही अपनी बात शुरू की, बिना किसी सवाल का इंतजार किए। उसने महसूस किया कि उसे अपनी स्थिति और उद्देश्य स्पष्ट करना चाहिए ताकि राजा उसकी बातों को सही ढंग से समझ सके।

इस पर उस बुद्धिमान साधू ने गहरी बातों से अपनी कहानी शुरू की और कहने लगा कि – “जिस महल में मैं रहता था, वह अब जर्जर हो चुका है और कभी भी टूटकर गिर सकता है। पहले मेरे 32 नौकर थे, जो एक-एक करके चले गए। पाँचों रानियाँ भी अब वृद्ध हो गई हैं और उनसे कोई काम नहीं होता।”  साधू की इन बातों में गहराई और संकेत छिपे थे, जिन्हें सुनकर राजा गंभीर हो गया और उसके कहे शब्दों को ध्यान से समझने लगा।


राजा और बुद्धिमान साधू का संवाद

साधू की बातें सुनकर राजा को यह अहसास हुआ कि साधू न केवल चतुर था, बल्कि प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात बड़ी कुशलता से व्यक्त कर रहा था। राजा ने उसकी परिस्थितियों को समझते हुए उसे 10 सोने के सिक्के देने का आदेश दिया, लेकिन साधू ने शांत स्वर में कहा कि यह पर्याप्त नहीं है।

राजा ने थोड़ा हैरान होते हुए कहा, ‘इस साल राज्य में सूखा पड़ा है, आप इतने से ही संतोष कर लें।’

साधू मुस्कुराते हुए बोला, ‘यदि आप चाहें तो मेरे साथ सात समंदर पार चलें, जहाँ सोने की खदानें हैं। मेरे पैर पड़ते ही समुद्र सूख जाएगा, और आप तो मेरी पैरों की शक्ति पहले ही देख चुके हैं।’ साधू की इस बात में भी गहरा संकेत छिपा था। राजा उसकी बुद्धिमानी और चतुराई को समझ गया और उसने उसे 100 सोने के सिक्के देने का आदेश दिया।”


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बुद्धिमान साधू की अपनी बुद्धिमता की प्रस्तुति

साधू के जाने के बाद मंत्रियों ने राजा से पूछा, “महाराज, आपका तो कोई बड़ा भाई नहीं है, फिर आपने उसे इतना इनाम क्यों दिया?” राजा ने मंत्रियों को समझाया कि साधू ने बहुत ही बुद्धिमानी से अपनी बात रखी।

राजा ने कहा, “उसके जर्जर महल से उसका तात्पर्य उसके वृद्ध शरीर से था। 32 नौकर उसके दांत थे, और पाँच रानियाँ उसकी पाँच इंद्रियां थीं। समुद्र से उसने उलाहना दिया कि मैं उसे मात्र 10 सिक्के दे रहा था जबकि मेरी हैसियत उसे सोने से तौलने की है।” साधू की चतुराई और बुद्धिमानी से प्रसन्न होकर राजा ने उसे 100 सोने के सिक्के दिए।


राजा का निर्णय और पुरस्कृत करना

राजा ने न केवल साधू को इनाम दिया, बल्कि उसे अपना सलाहकार भी नियुक्त करने का निर्णय लिया। इस निर्णय से यह साफ हुआ कि साधू ने अपनी बुद्धिमत्ता से राजा के दिल में एक खास जगह बना ली।

यह घटना हमें यह सिखाती है कि बाहरी रूप-रंग से किसी की बुद्धिमानी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। साधू ने अपनी बातों में गहराई रखकर राजा को प्रभावित किया और एक साधारण से दिखने वाले व्यक्ति ने अपनी समझदारी से उच्च सम्मान पाया।

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Buddhiman Sadhu Ki Kahani का निष्कर्ष एवं  जीवन के लिए सीख

बुद्धिमान साधू की कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके बाहरी रूप, कपड़ों, या स्थिति के आधार पर नहीं आंकना चाहिए। जीवन में बुद्धिमानी ही वह गुण है जो कठिन परिस्थितियों में हमें सही रास्ता दिखाती है। साधू ने अपनी बुद्धिमानी से राजा को प्रभावित किया और उच्च इनाम पाया।

मित्रों, यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हर व्यक्ति में कुछ खास होता है। हमें सिर्फ बाहरी दिखावे के आधार पर किसी के प्रति पूर्वाग्रह नहीं रखना चाहिए। यदि हमें अपनी बुद्धिमानी का सही उपयोग करना आता है, तो हम किसी भी स्थिति में खुद को सफल साबित कर सकते हैं।

 

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