सर्वप्रथम गणेश का पूजन क्यों होता है?
गणेश का अर्थ और उनकी महत्ता
सर्वप्रथम गणेश का पूजन हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। गणेशजी को “विघ्नहर्ता” और “ऋद्धि-सिद्धि” का स्वामी कहा गया है। किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले उनकी पूजा करने से कार्य में सफलता मिलती है और विघ्नों का नाश होता है। गणेश का अर्थ है “गणों के ईश” अर्थात् वे सभी गणों (शक्तियों) के स्वामी हैं।
गणेशजी बुद्धि के देवता माने जाते हैं और उनकी पूजा से बुद्धि, विवेक, और दूरदर्शिता प्राप्त होती है। वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं और उनके स्मरण से ही कार्य सफल हो जाते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार सर्वप्रथम गणेश का पूजन
पद्मपुराण के अनुसार, जब सृष्टि की शुरुआत हुई, तो देवताओं में यह सवाल उठाया गया कि प्रथमपूज्य कौन होगा। सभी देवताओं ने यह तय किया कि जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा कर आएगा, उसे ही प्रथमपूज्य माना जाएगा।
गणेशजी का वाहन चूहा होने के कारण वे तेजी से परिक्रमा नहीं कर सकते थे। तब नारद मुनि ने उन्हें सलाह दी और गणेशजी ने भूमि पर ‘राम’ नाम लिखकर उसकी सात बार परिक्रमा की। चूंकि ‘राम’ नाम में संपूर्ण ब्रह्मांड निहित है, गणेशजी ने ब्रह्माजी को सबसे पहले जाकर परिक्रमा पूर्ण होने की सूचना दी और प्रथमपूज्य बन गए।
सर्वप्रथम गणेश का पूजन किए जाने की शिवपुराण कथा
शिवपुराण में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और पूछा कि किसे देवताओं का स्वामी चुना जाए। शिव ने कहा कि जो भी सबसे पहले पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करके लौटेगा, वही अग्रपूज्य होगा।
गणेशजी का वाहन चूहा धीमी गति से चलता था, इसलिए गणेशजी ने बुद्धि और चातुर्य का उपयोग किया। उन्होंने अपने माता-पिता शिव और पार्वती की तीन परिक्रमा की, जो तीनों लोकों की परिक्रमा के बराबर मानी गई। इस प्रकार गणेशजी अग्रपूज्य घोषित किए गए।
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वाराहपुराण के अनुसार सर्वप्रथम गणेश का पूजन क्यों किया जाता है ?
वाराहपुराण की एक अन्य कथा में वर्णित है कि देवताओं ने महादेव से प्रार्थना की कि उन्हें विघ्नों से मुक्ति दिलाई जाए। तब शंकरजी ने अपने पुत्र गणेशजी को आदेश दिया कि यज्ञ आदि कार्यों में उनकी पूजा सर्वप्रथम की जाएगी, अन्यथा कार्य में विघ्न पड़ेंगे।
इसी कारण गणेशजी को सभी शुभ कार्यों में पहले पूजा जाता है ताकि कार्य निर्विघ्न रूप से संपन्न हो।
सर्वप्रथम गणेश का पूजन क्यों है अनिवार्य?
गणेशजी को “विघ्नहर्ता” माना जाता है, जिसका अर्थ है कि वे सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करते हैं। इसीलिए हर शुभ कार्य की शुरुआत उनसे की जाती है ताकि कोई भी विघ्न उस कार्य में बाधा न डाल सके।
गणेशजी की पूजा करने से विवेक, संयम, और निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है। वे हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं और सभी अनुष्ठानों को सफल बनाते हैं।
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गणेशजी से जुड़ा मंत्र और उसकी महिमा
श्रीगणेश की स्तुति करते समय विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण मंत्र है:
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
इस मंत्र का अर्थ है कि “हे विशालकाय, टेढ़ी सूंड वाले देव, जो करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशवान हैं, कृपया मेरे सभी कार्यों को विघ्नरहित करें।”
यह मंत्र सभी प्रकार के विघ्नों को दूर करने वाला माना जाता है और शुभ कार्यों की सफलता के लिए इसका जाप आवश्यक है।
निष्कर्ष
सर्वप्रथम गणेश का पूजन करने की परंपरा हिंदू धर्म में अत्यंत प्राचीन और महत्वपूर्ण है। वे सभी कार्यों में विघ्नहर्ता के रूप में पूजे जाते हैं और उनकी पूजा करने से समस्त कार्य निर्विघ्न पूर्ण होते हैं। पौराणिक कथाएँ और धार्मिक मान्यताएँ यह स्पष्ट करती हैं कि गणेशजी को प्रथम पूज्य बनाने के पीछे उनकी बुद्धिमत्ता और सभी बाधाओं को दूर करने की क्षमता का महत्व है।