दक्षिण भारत की विवाह परंपराएँ: जानें 4 राज्यों की अनोखी और समृद्ध शादी की रस्में | South Indian Wedding Traditions Guide

दक्षिण भारत की विवाह परंपराएँ

दक्षिण भारत की विवाह परंपराएँ

भारत का हर क्षेत्र अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है, और विवाह उन परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। दक्षिण भारत की विवाह परंपराएँ अपने भव्यता और धार्मिकता के लिए जाने जाते हैं। ये विवाह न केवल दो लोगों को बल्कि दो परिवारों को भी जोड़ते हैं। इस लेख में हम दक्षिण भारत के चार प्रमुख राज्यों – तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश की अद्भुत विवाह परंपराओं के बारे में जानेंगे और देखेंगे कि कैसे ये रस्में प्रत्येक विवाह को खास बनाती हैं।


1. तमिलनाडु की विवाह परंपराएँ

तमिलनाडु के विवाह संस्कार पूरी तरह से वैदिक मंत्रों और धार्मिक रस्मों पर आधारित होते हैं। विवाह से पहले ‘कोल्लम’ (रंगोली) से घर को सजाया जाता है और नवदम्पति के लिए ‘कुंकुमम’ और ‘हल्दी’ का उपयोग किया जाता है। विवाह के दिन ‘कन्यादानम’ (जहां वधु के माता-पिता उसे वर को सौंपते हैं) और ‘मंगलसूत्र’ बंधन की रस्में सबसे प्रमुख होती हैं। इसके बाद, ‘सप्तपदी’ रस्म में वर और वधु सात फेरे लेते हैं।

  • वर पूजा: वधु के परिवार द्वारा वर का स्वागत और पूजा।
  • मंगलसूत्र बांधना: वधु के गले में वर द्वारा मंगलसूत्र पहनाया जाता है, जो उनके मिलन का प्रतीक है।

इसके अतिरिक्त, तमिलनाडु के विवाह समारोहों में परंपरागत संगीत और नृत्य, जैसे भरतनाट्यम, प्रमुख भूमिका निभाते हैं, जो इस भव्यता को और भी सुंदर बनाते हैं।

2. केरल की विवाह परंपराएँ

केरल में पारंपरिक विवाह को ‘नायर’ या ‘मलयाली’ विवाह कहा जाता है। यहाँ विवाह आमतौर पर मंदिर में होते हैं, जहां वर और वधु अपने परिवारों के साथ पूजाओं में भाग लेते हैं। केरल के विवाहों की सबसे मुख्य रस्म है ‘ताली’ बांधना। ताली एक पवित्र धागा होता है जिसे वर वधु के गले में बांधता है। इसे विवाह के बंधन का प्रतीक माना जाता है।

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  • ताली बंधन: वधु के गले में ताली पहनाई जाती है, जो उसकी विवाहित होने की पहचान होती है।
  • कैलीकोड़म रस्म: वधु और वर एक साथ सप्तपदी के साथ चलते हैं, जो उनकी एकता का प्रतीक है।

केरल के विवाह सादगी से भरपूर होते हैं, लेकिन उनमें एक भव्यता होती है जो सरलता के माध्यम से भी झलकती है। नवविवाहित जोड़ा विवाह के बाद परिवार से आशीर्वाद लेता है और विवाह भोज के साथ समारोह का समापन होता है।

3. कर्नाटक की विवाह परंपराएँ

कर्नाटक के विवाहों में पारंपरिक रस्मों के साथ-साथ स्थानीय तत्व भी शामिल होते हैं। विवाह का आरंभ ‘निश्चय तम्बूल’ से होता है जिसमें दोनों परिवार विवाह की पुष्टि करते हैं। विवाह के दिन, ‘वर पूजा’ और ‘वरतिनिका’ जैसे रस्में होती हैं, जिसमें वर का सम्मान किया जाता है। विवाह की सबसे महत्वपूर्ण रस्म ‘जोडी ताली’ होती है, जिसमें वर-वधु का एक पवित्र धागे से बंधन होता है।

  • वर पूजा: विवाह से पहले वर की पूजा की जाती है और उसे आशीर्वाद दिया जाता है।
  • सप्तपदी: यज्ञ के चारों ओर घूमते हुए सात फेरे लिए जाते हैं, जिससे विवाह को आधिकारिक रूप दिया जाता है।

कर्नाटक के विवाह में पारंपरिक व्यंजन और संगीत का भी विशेष योगदान होता है। समारोह के बाद, परिवार के सभी सदस्य नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद देने के लिए एकत्रित होते हैं।

4. आंध्र प्रदेश की विवाह परंपराएँ

आंध्र प्रदेश में विवाह समारोह पारंपरिक और सांस्कृतिक विविधता से भरे होते हैं। ‘पेल्लीकूथुरु’ नामक रस्म में वर और वधु को हल्दी का लेप लगाया जाता है ताकि शुद्धि और सुखद विवाह का आशीर्वाद मिले। प्रमुख रस्मों में ‘मांगल्य धाराना’ होती है, जिसमें वर वधु के गले में मंगलसूत्र पहनाता है। आंध्र प्रदेश के विवाहों में ‘जिलकारा बेल्लम’ नामक रस्म भी होती है, जिसमें जीरा और गुड़ से दोनों एक-दूसरे के माथे पर निशान लगाते हैं।

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  • जिलकारा बेल्लम: जीरा और गुड़ का मिश्रण माथे पर लगाकर एकता और मिठास का प्रतीक दर्शाते हैं।
  • तलाम्ब्रालु: हल्दी मिश्रित चावल को वर और वधु के सिर पर छिड़कने की रस्म, जिससे शुभकामनाएं मिलती हैं।

आंध्र प्रदेश के विवाह समारोह में भोजन का भी विशेष महत्व होता है। समृद्ध भोज के साथ परिवार के सभी सदस्य और मित्र इस खुशी के अवसर का आनंद लेते हैं।


निष्कर्ष

दक्षिण भारत की विवाह परंपराएँ भारतीय संस्कृति की समृद्ध धरोहर को दर्शाती हैं। हर राज्य की अनोखी परंपराएँ एक खास सामाजिक और धार्मिक संदेश लेकर आती हैं, जो पीढ़ियों से सहेजी जा रही हैं। ये रस्में सिर्फ धार्मिक कृत्य नहीं हैं; इनमें परिवार, प्रेम, और जीवन की महत्वपूर्ण मान्यताएँ छुपी हैं। इन परंपराओं के माध्यम से हमें भारतीय संस्कृति की गहराई और भावनात्मक पक्ष का अनुभव मिलता है, जो सभी रिश्तों को मजबूती और सच्चाई से जोड़ता है। इस सांस्कृतिक धरोहर को सहेजते हुए, हर नई पीढ़ी इस यात्रा को आगे बढ़ा रही है।

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